Pt. Nanak Chand ji

Introduction of

Pt. Nanak Chand Ji

पं0 नानक चंद परिचय

प्रीति रीति सब अर्थ की, परमारथ की नाहिं।
कहैं कबीर परमारथी, बिरला कोई कलि माहिं।।


अर्थात संसारी प्रेम-व्यवहार केवल धन के लिए है, परमार्थ के लिए नही। कबीरदास जी कहते है कि इस मतलबी युग में कोई विरला ही परमारथी होगा। ऐसे ही विरले महापुरूषो में अग्रगण्य मानवीय मूल्यों के पोषक पं0 नानक चंद जी का जन्म 05 अगस्त 1862 को मेरठ में ठठेरवाड़ा मौहल्ले में एक धनाढय ब्राहमण लाला गंगासहाय के घर में हुआ था। अपने समय और समाज की सीमा से आगे बढ़कर सोचने वाला व्यक्ति 'कालजयी' होता है। ऐसे ही भविष्यदृष्टा 'कालजयी' व्यक्तित्व के धनी पं0 नानक चंद जी ने महज 22 वर्ष की उम्र में सन् 1884 में अपनी समूची सम्पत्ति समाज को समर्पित कर दी थी।


20 जनवरी, 1885 को कचहरी में जमा किये गये इच्छा पत्र (वसीयत नामा) में पं0 नानक चंद जी द्वारा किये गये प्राविधानों से उनकी दूरदर्शिता एवं समय सापेक्ष सुचिन्तित जीवन दृष्टि का स्पष्ट बोध होता है।


1. पं0 नानक चंद जी ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का एक चैथाई भाग सदाव्रत के लिये समर्पित किया। इसके अन्तर्गत यात्रियों, धर्मभिक्षुकों, विकलांगों एवं निर्धन लोगों के कल्याणार्थ कार्य किए जाने का संकल्प है। 2. पं0 नानक चंद जी ने अपनी सम्पत्ति का दूसरा चैथाई भाग आश्रयहीन विधवाओं, सम्मानित किन्तु असहाय एवं संरक्षणहीन व्यक्तियों के कल्याणार्थ एवं विविध सामाजिक कार्यो को संचालित करने के लिये सुरक्षित रखा। 3. पं0 नानक चंद जी ने सम्पत्ति के शेष आधे भाग को एक ऐसे विद्यालय के निर्माण हेतु व्यय करने की सद्इच्छा व्यक्त की जिसमें संस्कृत अंग्रेजी एवं हिन्दी भाषा के माध्यम से अध्ययन, अध्यापन की श्रेष्ठ शैक्षिक प्रक्रिया का सूत्रपात किया जा सके। भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति इसलिए स्वीकार्य है, क्योंकि इसमें मानव जीवन का लक्ष्य 'स्वः नहीं अपितु' पर आधारित है। संवेदना करूणा, प्रेम, सहायता, दया और सहानुभूति वस्तुतः परमार्थ के ही अव्यय हैं, जो मानव को मानवता के वृहद सरोकारों से सम्बद्ध कर देते हैं। पं0 नानक चंद जी के चिन्तन में "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामयाः" की आदर्शवादी अवधारणा की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।


23 दिसम्बर, 1902 में 40 वर्ष की अल्पायु में नानक चंद जी के देहावसान के पश्चात् उनके संकल्पों को क्रियान्वित करने के लिए अक्टूबर 1903 में नानक चंद ट्रस्ट की स्थापना की गई। ट्रस्ट के स्थापनाकारों के अथक परिश्रम और लग्न के परिणाम स्वरूप सन् 1906 में पं0 नानक चंद जी की सम्पत्ति का उपयोग समाज कल्याण हेतु आरम्भ हुआ।

पं0 नानक चंद जी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में लिये गये संकल्प की पूर्ति हेतु 25 फरवरी, 1909 को संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन् राज्यपाल सर जाॅन प्रैस्काट हैविट द्वारा महाविद्यालय के मुख्य भवन का शिलान्यास किया गया और इस तरह नानक चंद मिडिल स्कूल स्थापित हुआ। समय के साथ विकास के विभिन्न सोपानों को चढ़ता हुआ मिडिल स्कूल वर्ष 1923 में हाईस्कूल बना। वर्ष 1947 में इण्टरमीडिएट की कक्षाएं आरम्भ हुई। सन् 1952 का वर्ष इस शैक्षिक संस्था के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इस वर्ष संस्था को कला संकाय में स्नातक कक्षाओं हेतु आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्धता प्राप्त हुई। साथ ही इण्टरमीडिएट तथा स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए दो अलग-अलग संस्थाओं में कार्य करना आरम्भ किया। कला संकाय में स्नातक कक्षाओं से प्रारम्भ हुआ नानक चंद एंग्लो संस्कृत काॅलेज, मेरठ नए-नए संकाय व उपलब्धियों से जुड़ता चला गया। सन् 1956 में विज्ञान संकाय, सन् 1958 में शिक्षा संकाय एवं विधि संकाय प्रारम्भ हुए। सन् 1956 में ही महाविद्यालय में हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, राजनीतिशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर कक्षाएं आरम्भ हुई। स्नातकोत्तर स्तर के अध्ययन-अध्यापन ने महाविद्यालय में शोध एवं उच्च शिक्षा का वातावरण सृजित करने में सहायता की। आज महाविद्यालय के विभिन्न विभागों में अनके शोधार्थी पी-एच0डी0 उपाधि हेतु शोधरत् है।


बदलते सामाजिक परिदृश्य और बढ़ती हुई व्यावसायिक चुनौतियों के मदद्ेनजर उच्चशिक्षा के नए अनुशासन व्यावसायिक पाठ्यक्रम में सम्मिलित हुए। स्ववित्त योजना के अन्तर्गत वाणिज्य संकाय में स्नातक एवं परास्नातक कक्षाएं संचालित की जा रही है।
आज महाविद्यालय में 45 से अधिक सुव्यवस्थित अध्ययन कक्ष, सुसज्जित सभागार, वृहत पुस्तकालय एवं वाचनालय आधुनिक उपकरणों से युक्त प्रयोगशालाएं उपलब्ध है। विद्यार्थियों के स्र्वांगीण विकास हेतु उन्हें शिक्षणेत्तर गतिविधियों के लिए प्रेरित किया जाता है। नगर के मध्य में स्थित महाविद्यालय का विशाल क्रीड़ा-परिसर हाॅकी, किक्रेट, एथलेटिक्स, फुटबाॅल तथा कुश्ती जैसे अनेक खेलों में स्तरीय प्रतिभाओं को जन्म देता रहा है। महाविद्यालय में हाॅकी का स्वर्णिम इतिहास रहा है। पं0 नानक चंद जी के आदर्शे से प्रेरित और संचालित यह महाविद्यालय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण महाविद्यालयों में से एक है। ट्रस्ट के सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यह एक पब्लिक ट्रस्ट है जिसके पदेन अध्यक्ष मेरठ के वर्तमान जिलाधिकारी होते है। नानक चंद ट्रस्ट की विश्वसनीयता और कार्यप्रणाली से प्रभावित होकर नगर एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी सम्पत्तियां समाज कार्य हेतु ट्रस्ट को समर्पित की है। उनमें से पं0 वैधनाथ जी निवासी मेरठ ने अपनी बडौत की प्रोपर्टी नानक चन्द ट्रस्ट को दी। कंुवर दिग्विजय सिंह जी निवासी कुचेसर ने एक इण्टर काॅलिज और उसको चलाने के लिये 300 बिघा जमींन नानक चन्द ट्रस्ट को दी।


सवाल उठता है कि क्या पं0 नानक चंद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े ट्रस्ट के संस्थापक मात्र है? उत्तर निश्चित रूप से नही में है। पं0 नानक चंद जी मानव धर्म के उत्थापकों में से एक हैं। ट्रस्ट के सुनियोजित गठन के माध्यम से उनके द्वारा आज भी पीड़ित मानवों की सहायता एवं कल्याण कार्य किये जा रहे है। ट्रस्ट द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान पावन ज्ञान के प्रकाश से मानवता को आलोकित कर मानव के लिए श्रेष्ठ दिशा निर्देशक बने हुए है।